Panchkula Mass Suicide : जब जिंदगी बन जाए कर्ज का बोझ।
हरियाणा के पंचकूला में हुई एक दिल दहला देने वाली घटना ने पूरे देश को झकझोर दिया। सेक्टर 27 में रहने वाले प्रवीण मित्तल नामक व्यक्ति ने भारी कर्ज के बोझ के चलते अपने पूरे परिवार के साथ खुदकुशी कर ली। इस दुखद घटना में उनके माता-पिता, पत्नी और तीन बच्चों की भी जान चली गई। बताया जा रहा है कि प्रवीण पर करीब 20 करोड़ रुपये का कर्ज था, जिसमें बैंकों और निजी सूदखोरों दोनों का पैसा शामिल था। उनकी दो फैक्ट्रियां बंद हो चुकी थीं, घर और गाड़ियां जब्त हो चुकी थीं, और लगातार धमकियों का सामना कर रहे थे। इस मानसिक दबाव ने उन्हें इस कदर तोड़ दिया कि उन्होंने मौत को अंतिम विकल्प मान लिया। यह पहली बार नहीं है जब किसी व्यक्ति ने कर्ज के चलते आत्महत्या का रास्ता चुना हो। पिछले कुछ वर्षों में ऐसी कई घटनाएं सामने आ चुकी हैं जहां लोग कर्ज के जाल में इस कदर फंस गए कि जिंदगी से हार मान ली।
कैसे आम हो गया है कर्ज लेना — और खतरनाक भी
आजकल लोन लेना बेहद आम हो गया है। गाड़ी से लेकर मोबाइल फोन और यहां तक कि टीवी और घरेलू राशन तक लोग EMI और क्रेडिट कार्ड के जरिए खरीदते हैं। बैंक और फाइनेंशियल कंपनियां ग्राहकों को फोन कर-करके पर्सनल लोन, क्रेडिट कार्ड और शॉपिंग लोन के ऑफर देती हैं। लोन की इस आसानी ने आम लोगों को फिजूलखर्ची की आदत डाल दी है। एक पुरानी कहावत है—”जितनी चादर हो उतने पैर पसारो”, लेकिन आज के समय में लोग अपनी औकात से ज्यादा खर्च कर देते हैं, और धीरे-धीरे कर्ज का बोझ बढ़ता जाता है। जब तक लोन समझदारी से लिया जाए और समय पर चुकाया जाए, तब तक यह फायदेमंद हो सकता है, लेकिन जैसे ही यह लिमिट से बाहर चला जाए, यह मानसिक और आर्थिक रूप से इंसान को बर्बाद कर देता है।
मौत के बाद कर्ज का क्या होता है? EMI कौन चुकाता है?
अगर कर्ज लेने वाले की मौत हो जाती है तो क्या बैंक कर्ज माफ कर देती है? इसका जवाब है—नहीं। बैंक सबसे पहले को-एप्लिकेंट या गारंटर से बकाया वसूलने की कोशिश करती है। अगर कोई को-एप्लिकेंट नहीं है, तो बैंक मृतक की संपत्तियों जैसे कि घर, कार, सोना, निवेश आदि को जब्त कर बेच सकती है। अगर लोन होम लोन है तो बैंक उस घर को नीलाम करके पैसे वसूल सकती है। कार लोन की स्थिति में कार को जब्त कर दिया जाता है। हालांकि, अगर लोन लेने वाले ने लोन प्रोटेक्शन इंश्योरेंस लिया है तो उसकी मृत्यु के बाद पूरी राशि बीमा कंपनी चुका देती है। पर्सनल लोन की स्थिति में, यदि परिवार के किसी सदस्य ने को-एप्लिकेंट या गारंटर के तौर पर दस्तखत नहीं किए हैं, तो उनकी जिम्मेदारी नहीं बनती। लेकिन बैंक कानूनी वारिसों से संपर्क कर सकती है, और उनके ऊपर सामाजिक और कानूनी दबाव बना सकती है।
क्या है कर्ज न चुका पाने पर कानूनी विकल्प?
अगर कोई व्यक्ति कर्ज चुकाने में असमर्थ हो जाता है तो उसे खुदकुशी नहीं, बल्कि कानून का सहारा लेना चाहिए। भारत सरकार ने इस स्थिति के लिए Insolvency and Bankruptcy Code (IBC), 2016 लागू किया है। इसके तहत व्यक्ति या कंपनी यह घोषणा कर सकते हैं कि वे कर्ज चुकाने में असमर्थ हैं। इसके बाद कोर्ट उनकी संपत्तियों और देनदारियों का मूल्यांकन करती है और उसके आधार पर कर्ज का निपटारा करती है। इसके अलावा Debt Recovery Tribunal (DRT) भी एक कानूनी प्लेटफॉर्म है जहां व्यक्ति कर्ज न चुका पाने की स्थिति में राहत पा सकते हैं। इसके तहत कोर्ट कर्जदार की देनदारियों और कुल संपत्ति का विश्लेषण कर निर्णय लेता है। यह प्रक्रिया पारदर्शी होती है और इससे कर्जदाता और कर्जदार दोनों को न्याय मिलता है।
निष्कर्ष: कर्ज से बचने और जीने के लिए समझदारी जरूरी है
कर्ज लेना बुरा नहीं है, लेकिन कर्ज को समझदारी और योजना के साथ लिया जाए तो ही यह लाभदायक साबित होता है। अनियंत्रित खर्च और बिना सोच-समझे कर्ज लेने की आदत व्यक्ति को बर्बादी की ओर ले जाती है। पंचकूला की घटना हमें यह सिखाती है कि अगर कोई समस्या आए तो उसका समाधान मौत नहीं बल्कि सही जानकारी और मदद से संभव है। अगर आप कर्ज के जाल में फंसे हुए हैं तो तुरंत किसी वित्तीय सलाहकार से बात करें, कानूनी मदद लें, और जरूरत हो तो काउंसलिंग भी लें। आत्महत्या कभी भी किसी समस्या का हल नहीं होती — और किसी मासूम को अपनी गलती की कीमत जिंदगी देकर नहीं चुकानी चाहिए।
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