Indian Cricket Team: बीसीसीआई ने भारतीय टीम (Indian Cricket Team) के लिए एक बार फिर नई चयन समिति के लिए आवेदन मंगाए हैं. मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक 50 से अधिक क्रिकेटरों ने इसके लिए आवेदन किए हैं. लेकिन इनमें एक-दो नाम ही ऐसे हैं, जिन्होंने टीम इंडिया (Team India) के लिए लंबे समय तक क्रिकेट खेला है. नई चयन समिति (BCCI selection committee) दिसंबर में सामने आ सकती है.
क्या आपने कभी सोचा है कि जो BCCI टीम इंडिया का कोच चुनने के लिए पूरी दुनिया खंगाल मारती है, उसे सेलेक्टर ढूंढ़े क्यों नहीं मिलते. क्यों भारतीय क्रिकेट टीम चुनने वाली समिति में ऐसे नाम आते हैं, जिनके बारे में जानने के लिए दिमाग पर जोर डालना पड़ता है या गूगल करना पड़ता है. क्या कारण है कि सैकड़ों टेस्ट मैच खेलने वाले या विकेट या रनों का अंबार लगाने वाले हमारे चहेते क्रिकेटर, चयनकर्ता बनने से कतराते हैं.
अभी जब आप यह वीडियो देख रहे हैं, मैं दावे से कह सकता हूं कि आधे से ज्यादा दर्शकों को उन 5 चयनकर्ताओं के नाम जल्दी याद नहीं आएंगे, जिन्होंने टी20 वर्ल्ड कप के लिए टीम चुनी थी औैर जिन्हें बीसीसीआई ने कार्यकाल खत्म होने से पहले ही बर्खास्त कर दिया. बोर्ड ने इसके बाद नई चयन समिति के लिए आवेदन मंगाए. 28 नवंबर आवेदन करने की अंतिम तारीख थी. अब सारे आवेदन आ चुके हैं और कुछ दिनों के भीतर ही नई चयन समिति सामने आ जाएगी.
लेकिन यकीन मानिए, पिछले 10 साल की तरह इस बार भी चयनसमिति में कोई बड़ा नाम नहीं रहने वाला है. और इसकी वाजिब वजह भी है. दरअसल, चयनकर्ताओं का काम नेकी कर दरिया में डाल जैसा है. चयनकर्ताओं को अपने इस काम के बदले आलोचना तो मिलती है. दुनिया इनकी कमियां गिनाने के लिए तैयार तो बैठी रहती है. लेकिन अच्छे काम का क्रेडिट इन्हें कभी नहीं मिलता.
चयनकर्ताओं के इस काम को समझने के लिए ज्यादा पीछे जाने की जरूरत नहीं है. बस टी20 वर्ल्ड कप और भारत-न्यूजीलैंड सीरीज पर नजर डाल लीजिए. हर कोई यह बहस कर रहा है कि संजू सैमसन या दीपक हुड्डा को मौका क्यों नहीं मिल रहा. चयनकर्ताओं को बार-बार ब्लेम किया जा रहा है कि वे संजू सैमसन, दीपक हुड्डा जैसे क्रिकेटरों को पर्याप्त मौके नहीं दे रहे हैं. लेकिन आपने सूर्यकुमार यादव को सही वक्त पर चुने जाने की तारीफ में शायद ही कोई शब्द सुना हो. शायद ही किसी क्रिकेटप्रेमी ने इस बात के लिए चयनकर्ताओं के पक्ष में ट्वीट किए हों.
लेकिन सिर्फ क्रेडिट या ब्लेम गेम ही वह पहलू नहीं है, जिसके कारण दिग्गज क्रिकेटर चयनकर्ता बनने से कतराते हैं. दरअसल, चयनकर्ताओं का काम कड़ी मेहनत मांगता है. साल के ज्यादातर समय देश में घरेलू क्रिकेट जारी रहता है. ये मैच देश के तकरीबन हर कोने में होते हैं और चयनकर्ताओं को इन मैचों को देखने के लिए लगातार ट्रैवल करना होता है. इतना ही नहीं, जिन मैचों को देखने के लिए वे नहीं पहुंच पाते, उनके प्रदर्शन पर भी नजर रखना उनकी जिम्मेदारी होती है. जैसे कि अगर नॉर्थ जोन में दिल्ली, मोहाली, लखनऊ में एक ही दिन में मैच खेले गए तो चयनकर्ता तो एक ही मैच लाइव देखेगा. लेकिन उसे बाकी दोनों मैचों के प्रदर्शन का भी बारीक आकलन करना होता है. इसके लिए वह अक्सर अंपायरों, मैच रेफरी, पूर्व क्रिकेटरों से मदद लेता है. इसके बाद ही वह पूरी जवाबदेही के साथ किसी खिलाड़ी का नाम सेलेक्शन के लिए प्रपोज करता है.
और आखिर में वह बात, जो अब क्रिकेट से साये की तरह जुड़ चुकी है. यानी मनी. मुख्य चयनकर्ता को अपने काम के बदले BCCI से सालाना 1 करोड़ रुपए मिलते हैं. बाकी 4 चयनकर्ताओं को 80-80 लाख रुपए मिलते हैं. वैसे तो यह रकम काफी बड़ी है. लेकिन कामयाब क्रिकेटरों के लिए ऐसा नहीं कहा जा सकता. खासकर उन क्रिकेटरों के लिए जिन्होंने 1985 या इसके बाद से क्रिकेट खेलना शुरू किया और लंबी पारी खेली. आज की तारीख में कॉमेंट्री करके ही ये क्रिकेटर करोड़ों कमा लेते हैं. वह भी बिना किसी जवाबदेही के. सोशल मीडिया पर टीम चुनकर शायद वे चयनकर्ता होने का अनुभव भी कर ही लेते हैं. तो फिर सिर्फ 80 लाख रुपए सालाना हासिल करने के लिए कोई दिग्गज क्रिकेटर क्यों ही चयनकर्ता बनना चाहेगा.
तो फिर सवाल उठता है सिर्फ 80 लाख रुपए सालाना हासिल करने के लिए कोई दिग्गज क्रिकेटर क्यों इतनी बड़ी जिम्मेदारी लेना चाहेगा. इस सवाल के जवाब में पूर्व कोच लालचंद राजपूत कहते हैं कि जिम्मेदारी ना लेने की बात सही नहीं है. रिटायर होने के बाद क्रिकेटर अपनी नई राह औैर जिम्मेदारी चुनते हैं. यह जिम्मेदारी कोच से लेकर कॉमेंटेटर या कुछ और हो सकती है. इसके तहत उनके अपने संबंधित टीमों, फ्रेंचाइजी या चैनलों से कॉन्ट्रैक्ट होते हैं. कई बार इन कॉन्ट्रैक्ट के चलते भी क्रिकेटर चयनकर्ता या ऐसी अन्य जिम्मेदारी नहीं ले पाते.
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