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UP Lok Sabha Result 2024: उत्तर प्रदेश में भाजपा से हुईं ये 10 बड़ी गलतियां, यहां समझने में हुई फेर

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UP Lok Sabha Result 2024: उत्तर प्रदेश में भाजपा से हुईं ये 10 बड़ी गलतियां, यहां समझने में हुई फेर

UP Lok Sabha Result 2024: उत्तर प्रदेश में भाजपा की हार की कोई एक नहीं बल्कि कई वजहें हैं। भाजपा के तमाम दिग्गज नेता व मंत्री भी अपनी विधानसभा सीटों पर भाजपा उम्मीदवारों को बढ़त नहीं दिला सके।

UP Lok Sabha Result 2024: हालांकि, मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के गढ़ में भाजपा (Bharatiya Janata Party) सभी विस सीटों पर जीती है। अगर यही प्रदर्शन बाकी के मंत्रियों व दिग्गज नेताओं के क्षेत्रों में होता तो चुनाव परिणाम अलग होते।

भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष भूपेंद्र सिंह चौधरी व उप मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य भी अपने-अपने क्षेत्रों में भाजपा को बढ़त दिला पाने में सफल नहीं हो पाए। नतीजतन पार्टी 64 लोस सीटों से फिसलकर 33 पर आ गई।

UP Lok Sabha Result 2024: यह रहे भाजपा की हार के 10 बड़े कारण-

जातीय समीकरणों को गंभीरता से नहीं लिया

भाजपा ने जातीय समीकरणों पर पूरी पकड़ नहीं बनाई। पार्टी ने 16 ब्राह्मण,13 ठाकुर, कुर्मी व पासी छह-छह, लोधी चार, जाट, खटीक, निषाद समाज के तीन-तीन उम्मीदवारों को मैदान में उतारा था।

इसके अलावा गुर्जर, जाटव, बनिया समाज के दो-दो, कश्यप, पंजाबी, पारसी, सैनी, धनगर, वाल्मीकि, धानुक, कोरी, गोंड, यादव, शाक्य, कुशवाहा, भूमिहार व तेली समाज से एक-एक उम्मीदवार को चुनावी मैदान में उतारा था।

वहीं सपा ने केवल पांच यादव को छोड़कर बाकी सभी समाज के उम्मीदवारों का चयन किया। खास तौर पर मुस्लिम उम्मीदवारों के चयन ने सपा व कांग्रेस को बढ़त बनाने का मौका दिया।

संविधान बदलने के मुद्दे में सपा व कांग्रेस ने उलझाया

आईएनडीआईए ने चुनाव के दौरान संविधान बदलने का मुद्दा उठाकर भाजपा को उलझा लिया। भाजपा इसका काट नहीं दे पाई। इस दौरान भाजपा के कुछ नेताओं के 400 पार के दावे के पीछे संविधान बदलने संबंधी बयानों ने सपा व कांग्रेस के आरोपों पर लोगों को भरोसा बढ़ा दिया।

इस मुद्दे का असर दिखाई देते ही कांग्रेस और सपा ने इसे आरक्षण से जोड़ दिया कि भाजपा सत्ता में आते ही आरक्षण भी समाप्त कर देगी। नतीजतन तमाम सीटों पर वंचित समाज के मतदाताओं ने भाजपा से दूरी बना ली।

रोजगार और पेपर लीक मामले

गठबंधन के पेपर लीक मामले के मुद्दे का भी भाजपा मजबूती से जवाब नहीं दे पाई। इसी के साथ बेरोजगारों को नौकरी देने के वादे ने कांग्रेस और सपा को चुनाव में बढ़त दिला दी। राहुल गांधी ने हर सभा में इस संबंध में बयान देकर इसे युवाओं के दिमाग से बाहर होने ही नहीं दिया। उल्टा यह आरोप लगाकर कि पेपर लीक इसलिए करवाए जा रहे हैं कि भाजपा नौकरी नहीं देना चाहती है, के सहारे सपा व कांग्रेस ने तमाम युवाओं को अपने साथ खड़ा कर लिया।

हिंदू मतदाताओं का बंटवारा भी पड़ा भारी

भाजपा की हार में एक बड़ा कारण हिंदू मतदाताओं के बीच बंटवारा रहा। एक तरफ जहां कांग्रेस व सपा ने अल्पसंख्यकों खासकर मुस्लिमों को एकजुट कर लिया तो वहीं भाजपा हिंदुओं को एकजुट कर पाने में सफल नहीं हो पाई। राम मंदिर जैसे मुद्दे का प्रभाव कम होना भी इसका बड़ा कारण माना जा रहा है।

कई प्रयोग भी फेल हुए

सभी 80 सीटों को जीतने के लिए भाजपा ने कई नए प्रयोग किए थे, लेकिन वह खरे नहीं उतरे। सरकार की कल्याणकारी योजनाओं के लाभार्थियों से संपर्क अभियान भी बेअसर रहा। टिफिन बैठक, युवा संपर्क अभियान, विकसित भारत संकल्प यात्रा, मोदी का पत्र वितरण जैसे कई प्रमुख अभियान और सरकार की कल्याणकारी योजनाओं के लाभार्थियों को साधने की कोशिश भी कारगर सिद्ध नहीं हुई।

पार्टी काडर कार्यकर्ताओं की उपेक्षा, बाहरी पर भरोसा

भाजपा के कार्यकर्ताओं इस बात को लेकर भी नाराज दिखाई दिए कि उनकी सुनवाई नहीं हुई। इसके चलते पन्ना प्रमुखों और बूथ कमेटियों की सक्रियता की कमी दिखाई दी।

विरोध को गंभीरता से नहीं लिया

फिरोजाबाद, फतेहपुर सीकरी, अलीगढ़, मुजफ्फरनगर, कैराना, मुरादाबाद, बरेली, बस्ती,संत कबीर नगर, बलिया, बांदा,अयोध्या, जालौन, सलेमपुर, कौशांबी, प्रतापगढ़, धौरहरा में स्थानीय भाजपा नेताओं व कई विधायकों का विरोध दिखाई दिया। सीकरी में भाजपा विधायक बाबूलाल के बेटे बगावत कर चुनाव लड़ा। इसे समय रहते पार्टी हल नहीं कर पाई।

सांसदों व विधायकों की निष्क्रियता

प्रदेश व केंद्र सरकार के अधिकतर मंत्री अपने-अपने क्षेत्रों में सक्रिय नहीं थे। इसकी वजह से वह सरकार की योजनाओं को लेकर अपने क्षेत्रों के मतदाताओं के बीच पकड़ नहीं बना सके। इसका असर चुनाव में खुलकर दिखाई दिया।

स्थानीय नेताओं की राय न मानना पड़ा भारी

उम्मीदवारों के चयन में भाजपा ने बड़ी चूक की और स्थानीय स्तर पर विरोध के बाद भी कई चेहरों को दोबारा मैदान में उतार दिया। इनमें चंदौली से हारे केंद्रीय मंत्री महेंद्र नाथ पांडेय भी शामिल थे। भारी उद्योग मंत्री होने के बाद भी अपने क्षेत्र में कोई बड़ा प्रोजेक्ट लाने में सफल नहीं हो सके।

इसी तरह, अजय मिश्रा टेनी को लेकर भी खीरी लोस क्षेत्र में विधायकों व मतदाताओं में नाराजगी थी। यही हाल अमेठी की सीट का भी था। स्मृति इरानी को लेकर भी मतदाताओं में नाराजगी थी। बस्ती से हरीश द्विवेदी को फिर टिकट देने का भी वहीं के विधायक विरोध कर रहे थे।

कई सीटों पर बसपा के उम्मीदवारों ने बिगाड़ा खेल

कई सीटों पर बसपा के उम्मीदवारों ने भाजपा का खेल बिगाड़ दिया। खास तौर पर पश्चिमी उप्र की कई सीटों पर बसपा के उम्मीदवारों ने भाजपा का वोट ही नहीं काटा बल्कि हार का कारण भी बने।

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