Tuesday, May 7, 2024
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क्या आप जानते हैं ? बढ़ती उम्र के साथ दिमाग की पावर क्यों हो जाती है कम, जानिए सप्ताह के अंदर कैसे बढ़ाएं ब्रेन पावर

Brain Power: उम्र बढ़ने के साथ शरीर की तुलना में दिमाग तेजी से बूढ़ा होता है। रोजमर्रा के कामों में संकेत दिखने लगते है। छोटी-छोटी बातों का ध्यान रखना दिमागी ताकत को कमजोर नहीं होने देता, बता रही हैं शमीम खान…

मस्तिष्क शरीर का कंट्रोल सेंटर है। यह शरीर की प्रत्येक गतिविधि को काबू करता है। सोचना, चीजों को याद रखना, योजना बनाना, निर्णय लेना, प्रबंधन करना और भी कई काम मस्तिष्क के ही जिम्मे होते हैं। तभी लगभग 200 ग्राम के इस छोटे से अंग को काम करने के लिए शरीर द्वारा प्राप्त की गई कुल ऊर्जा के 20 प्रतिशत की जरूरत होती है। उम्र बढ़ने के साथ शरीर की तुलना में मस्तिष्क तेजी से बूढ़ा होता है, जिसका प्रभाव जीवन की गुणवत्ता पर भी पड़ता है।

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नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ हेल्थ (एनआईएच) द्वारा जारी रिपोर्ट में कहा गया है कि 40 के बाद हर दस साल यानी एक दशक में मस्तिष्क का वॉल्यूम 5 प्रतिशत की दर से कम होने लगता है। 60 के बाद इसमें और तेजी आ जाती है। मस्तिष्क की ओर खून के प्रवाह में 40 के बाद हर साल 0.3-0.5 फीसदी की दर से कमी आती है।

बढ़ती उम्र का मस्तिष्क पर प्रभाव

जैसे-जैसे हमारी उम्र बढ़ती है, मस्तिष्क सिकुड़ता जाता है और वॉल्यूम कम होने लगता है, विशेषकर फ्रंटल कॉर्टेक्स। याददाश्त कमजोर पड़ने लगती है। संरचना से लेकर सामान्य कार्यप्रणाली तक, सभी स्तर पर में परिवर्तन आने लगते हैं। कोलंबिया में हुए एक अध्ययन के मुताबिक, 70 की उम्र के बाद दिमाग की ओर रक्त का प्रवाह 27 फीसदी तक घट जाता है।

  • ब्रेन मास फ्रंटल लोब और हिप्पोकैम्पस में संकुचन आने लगता है। ये वो क्षेत्र हैं, जो संज्ञात्मक कार्यों जैसे चीजों को पहचानना, वस्तुओं व व्यक्तियों के नाम याद रखना, नई यादें संग्रहित करना आदि कॉगनिटिव काम करता है।
  • कार्टिकल डेनसिटी इसमें सिनैप्टिक कनेक्शन में कमी आ जाती है, इससे दिमाग की बाहरी सतह पतली होने लगती है। इससे याददाश्ज कमजोर होती है, ध्यान केंद्रण की क्षमता प्रभावित होती है और डिप्रेसिव इलनेस का खतरा बढ़ जाता है।
  • व्हाइट मैटर व्हाइट मैटर मालिनेट नर्व फायबर्स से बना होता है, जो दिमाग की कोशिकाओं के मध्य नसों के संकेत को ले जाती हैं। शोधकर्ताओं का मानना है कि उम्र बढ़ने से मायलिन संकुचित होने लगता है, इस कारण प्रोसेसिंग और कॉगनिटिव फंक्शन्स में कमी आने लगती है।
  • न्यूरोट्रांसमीटर सिस्टम्स उम्र बढ़ने के साथ मस्तिष्क द्वारा निर्मित किए जाने वाले केमिकल मैसेंजर्स में कमी आ जाती है। डोपामिन, एसिटिलकोलिन, सेरेटोनिन और नारएपिनेफ्रिन की गतिविधियां भी घट जाती हैं। इससे याददाश्त और दिमागी काम करने पर असर पड़ता है। अवसाद की आशंका बढ़ जाती है। अधेड़ उम्र से हर दशक में डोपामिन का स्तर 10 प्रतिशत कम हो जाता है।

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क्या होते हैं संकेत

दी जर्नल ऑफ न्यूरोसाइंसेस में ब्रेन एजिंग पर प्रकाशित एक लेख में कहा गया है कि जब आपका मस्तिष्क बूढ़ा होने लगता है तो उसे कई कामों को करने में परेशानी आने लगती है जैसे;

  • नई चीजें सीखने में दिक्कत होना
  • नई चीजों को प्रोसेस करने में अधिक समय लगना
  • मल्टी टॉस्किंग यानी एक साथ दो-तीन काम करने में परेशानी आना
  • पहले की तरह नाम और नंबर याद न रख पाना
  • मनपसंद डिश की रेसेपी भूल जाना
  • ड्राइविंग करने में परेशानी होना हाल की घटनाओं को याद न कर पाना
  • समय और स्थान को लेकर भ्रमित होना।
  • ध्यान केंद्रण की क्षमता प्रभावित होना।

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उम्र का बढ़ना उम्र के साथ उन हार्मोनों और प्रोटीनों में कमी आ जाती है, जो मस्तिष्क की कोशिकाओं को सुरक्षा देती हैं। मस्तिष्क की ओर रक्त प्रवाह भी धीमा हो जाता है। नए न्यूरॉन बनने की प्रक्रिया धीमी हो जाती है। 60 के बाद लगभग 40 प्रतिशत लोगों को भूलने की बीमारी हो जाती है।

नींद की कमी नींद की कमी से दिमाग की सोचने की क्षमता, सृजनशीलता और समस्याएं हल करने की क्षमता कम होती है। अनिद्रा याददाश्त भी कमजोर करती है। यादें बनने की प्रक्रिया दिमाग में तब होती है, जब आप नींद के सबसे गहरे स्तर पर होते है। हार्वर्ड यूनिवर्सिटी में हुए एक शोध के अनुसार मैग्नीशियम की थोड़ी सी भी कमी दिमाग को सोने से रोकती है।

अत्याधिक मानसिक तनाव अमेरिका के नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ हेल्थ के अनुसार लगातार तनाव दिमाग को कमजोर बनाता है। मस्तिष्क की संरचना में बदलाव आ जाता है।

गैजेट्स का अधिक इस्तेमाल दक्षिण कोरिया की राजधानी सिओल में हुए एक अध्ययन के अनुसार, जो लोग प्रतिदिन 7 घंटे से अधिक गैजेट्स का इस्तेमाल करते हैं, उनका मस्तिष्क क्षतिग्रस्त हो जाता है, जिससे डिजिटल डिमेंशिया का खतरा बढ़ जाता है। गैजेट्स का अधिक इस्तेमाल मानसिक क्षमता को सिर में लगी चोट या मनोरोग जितना प्रभावित करता है।

इसके अलावा विटामिन बी12 व विटामिन डी की कमी, स्वास्थ्य समस्याएं जैसे ब्रेन टयूमर, हाइपोथायरॉइडिज्म, संक्रमण व रक्तवाहिकाओं में गड़बड़ी भी मानसिक सेहत पर असर डालते हैं। नशीली वस्तुएं भी मस्तिष्क तंत्र पर बुरा असर डालती हैं।

तनाव प्रबंधन

अच्छी दिनचर्या और योजना बनाकर काम करना तनाव, हड़बड़ी और जरूरी चीजों के छूटने की आशंका को कम करते हैं। दूसरों की मदद भी लें।

अकेलेपन से बचें

सामाजिक सक्रियता से तनाव, अवसाद और डिमेंशिया का खतरा कम होता है।

धूम्रपान व अल्कोहल से दूरी

शराब व दूसरी नशीली चीजें दिमाग में रासायनिक बदलाव करती हैं। क्रोध, अवसाद व चिंता बढ़ती है। निकोटिन दिमाग की कोशिकाओं पर बुरा असर डालता है।

मानसिक सेहत

मन को स्वस्थ रखें। सक्रिय रहें, सकारात्मक सोच रखें। जरूरत पड़ने पर पेशेवर की मदद लें।

ध्यान व प्राणायाम

तन और मन का तालमेल बेहतर होता है। एकाग्रता बढ़ती है। सूजन की आशंका भी कम होती है।

दिमागी काम करें

नई जटिल चीजें सीखें जैसे नई भाषा, संगीत। क्रॉस वर्ड, सुडोकू व शतरंज आदि खेलें।

विटामिन डी
हर दिन सूरज की रोशनी में कुछ समय बिताएं।

पर्याप्त नींद
नींद पूरी करें। 15 से 20 मिनट की झपकियां भी ले सकते हैं।

पानी पिएं
दिमाग की कोशिकाएं बेहतर काम करती हैं। पोषक तत्वों की पूर्ति होती है। टॉक्सिन जमा नहीं होते। निर्णय प्रक्रिया में सुधार होता है।

व्यायाम करें
व्यायाम से मस्तिष्क की ओर रक्त प्रवाह बेहतर होता है। मूड ठीक रहता है, तनाव कम होता है। सूजन होने की आशंका कम होती है। सोचने-समझने की प्रक्रिया बेहतर बनती है।

भोजन
-विटामिन ई, बी और ओमेगा-3 फैटी एसिड युक्त चीजे जरूर लें।
-प्रोसेस्ड चीजें कम खाएं, नमक व चीनी की कम रखें।

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Vinod Maurya
Vinod Maurya
Vinod Maurya has 2 years of experience in writing Finance Content, Entertainment news, Cricket and more. He has done B.Com in English. He loves to Play Sports and read books in free time. In case of any complain or feedback, please contact me @informalnewz@gmail.com
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