संपत्ति अधिकार: दिल्ली उच्च न्यायालय ने फैसला दिया है कि बहू को अपने ससुर की पैतृक संपत्ति से भरण-पोषण प्राप्त करने का कानूनी अधिकार है।
पारिवारिक संपत्ति को लेकर कई लोगों में विवाद होते हैं। आमतौर पर अदालतें ऐसे मामलों में सनसनीखेज फैसले सुनाती हैं। दिल्ली उच्च न्यायालय ने हाल ही में पारिवारिक संपत्ति के वर्गीकरण के संबंध में एक महत्वपूर्ण फैसला सुनाया है। इसमें कहा गया है कि विधवा बहू को अपने ससुर की पैतृक संपत्ति से भरण-पोषण पाने का कानूनी अधिकार है। हालाँकि, यह अधिकार ससुर द्वारा स्वयं अर्जित या निर्मित संपत्ति पर लागू नहीं होता है। न्यायालय ने यह फैसला विधवा महिलाओं को सुरक्षा और आर्थिक सहायता प्रदान करने के उद्देश्य से दिया।
मामला क्या है?
यह फैसला एक महिला द्वारा दायर याचिका पर आया, जिसके पति की मार्च 2023 में मृत्यु हो गई थी। उसके ससुर का दिसंबर 2021 में ही निधन हो गया था। महिला ने हिंदू दत्तक ग्रहण एवं भरण-पोषण अधिनियम, 1956 की धारा 19, 21, 22 और 23 के तहत भरण-पोषण की मांग करते हुए अदालत का दरवाजा खटखटाया था। शुरुआत में, पारिवारिक न्यायालय और एकल न्यायाधीश, दोनों ने उसकी याचिका खारिज कर दी थी। बाद में, उसने इस फैसले के खिलाफ दिल्ली उच्च न्यायालय में याचिका दायर की। इस मामले की सुनवाई पूरी हो चुकी है और नवीनतम फैसला सुनाया गया है।
दिल्ली उच्च न्यायालय के निर्णय,
न्यायमूर्ति अनिल खेत्रपाल और न्यायमूर्ति हरीश वैद्यनाथन शंकर की पीठ ने स्पष्ट किया कि हिंदू दत्तक ग्रहण एवं भरण-पोषण अधिनियम, 1956 की धारा 19 और 21 के अंतर्गत, विधवा पुत्रवधू अपने ससुर की पैतृक संपत्ति से भरण-पोषण पाने की हकदार है। पैतृक संपत्ति का अर्थ है परिवार में पीढ़ियों से विरासत में मिली संपत्ति। इसमें ससुर द्वारा व्यक्तिगत आय से अर्जित संपत्ति शामिल नहीं है। न्यायालय ने निर्णय दिया कि यह अधिकार ससुर की मृत्यु के बाद भी लागू होता है, जब तक कि पैतृक संपत्ति मौजूद है। हालाँकि, यदि ससुर के पास केवल स्वयं द्वारा अर्जित संपत्ति है, तो विधवा पुत्रवधू उससे भरण-पोषण नहीं प्राप्त कर सकती।
यह फैसला क्यों महत्वपूर्ण है?
अदालत ने कहा कि यह कानून सामाजिक कल्याण के लिए बनाया गया है, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि विधवा बहुएँ आर्थिक सहायता के बिना न रहें। न्यायाधीशों ने चेतावनी दी कि यदि धारा 19(1) की सही व्याख्या नहीं की गई, तो यह संसद के उद्देश्यों, जो कि कमजोर महिलाओं की सुरक्षा करना है, के विरुद्ध होगा। विशेषज्ञों का मानना है कि यह फैसला विधवाओं को सुरक्षा प्रदान करेगा, खासकर जब वे अपने पति की संपत्ति या अपने बच्चों से भरण-पोषण नहीं ले पातीं।
आश्रित कौन है?
हिंदू दत्तक ग्रहण एवं भरण-पोषण अधिनियम, 1956 की धारा 21 के अनुसार, ‘आश्रित’ शब्द में मृत पुत्र की पत्नी भी शामिल है। इसके अनुसार, एक विधवा पुत्रवधू अपने ससुर की पैतृक संपत्ति से भरण-पोषण का दावा कर सकती है। हालाँकि, यह दावा केवल तभी किया जा सकता है जब उसके पति, उसके अपने पुत्रों या पुत्रियों, या उनकी संपत्ति से भरण-पोषण उपलब्ध न हो।