EPF Withdrawal Rules- अगर आप पांच साल से पहले पैसा निकालते हैं तो आपको टैक्स देना होगा. यह टैक्स आपको उस साल देना होगा जिस साल आपने पीएफ अकाउंट से पूंजी निकाली है.
नई दिल्ली. जिस कंपनी में 20 या उससे ज्यादा कर्मचारी काम करते हैं, उनका कर्मचारी भविष्य निधि संगठन (EPFO) में रजिस्ट्रेशन होना जरूरी होता है. यही कारण है कि संगठित क्षेत्र में काम करने वाले ज्यादातर लोगों का पीएफ (PF Account) कटता है. जब कोई व्यक्ति जॉब शुरू करता है तो ईपीएफओ से एक यूनिवर्सल अकाउंट नंबर (UAN) प्राप्त होता है. आपका नियोक्ता इस यूएएन के तहत एक पीएफ खाता खोलता है, आप और आपकी कंपनी दोनों इसमें हर महीने योगदान करते हैं. बहुत से कर्मचारियों का मानना है कि ईपीएफ खाते से पैसा निकालने पर टैक्स नहीं देना होता. लेकिन, यह बात पूरी तरह सच नहीं है. कुछ परिस्थितियों में आपको निकासी पर टैक्स देना पड़ सकता है.
पांच साल तक ईपीएफ में कंट्रीब्यूशन के बाद अगर आप रकम निकालते हैं तो ईपीएफ खाताधारक (EPF Account) को कोई टैक्स नहीं देना पड़ता. अब इन 5 सालों में आपने एक कंपनी में काम किया है या एक से ज्यादा के साथ, इससे फर्क नहीं पड़ता है. लेकिन, अगर आपने 5 साल तक काम नहीं किया है और खाते में जमा रकम निकालते हैं तो टैक्स चुकाना होगा. हां, कुछ परिस्थितियों में पांच साल से पहले निकासी पर भी टैक्स छूट मिल जाती है. जैसे इम्प्लॉई के खराब स्वास्थ्य, एम्प्लॉयर के कारोबार बंद होने या अन्य वजहों से इम्प्लॉई की नौकरी छूट जाए जिसके लिए वह कतई जिम्मेदार नहीं हो.
कब देना होगा टैक्स?
अगर आप पांच साल से पहले पैसा निकालते हैं तो आपको टैक्स देना होगा. यह टैक्स आपको उस साल देना होगा जिस साल आपने पीएफ अकाउंट से पूंजी निकाली है. मान लीजिए किसी ने 2021-22 मे पीएफ में जमा करना शुरू किया और 2024-25 में ईपीएफ में जमा रकम निकालना चाहता है तो उसे टैक्स साल 2024-25 में देना होगा. जिस साल आपने पीएफ में योगदान किया है उस साल आपकी कुल आमदनी पर लागू टैक्स स्लैब के हिसाब से टैक्स की गणना की जाएगी. पीएफ में जमा रकम के चार हिस्से होते हैं, कर्मचारी का अंशदान, नियोक्ता का अंशदान, एम्प्लॉयर के कंट्रीब्यूशन पर मिलने वाला ब्याज और कर्मचारी के कंट्रीब्यूशन पर मिलने वाला ब्याज. 5 साल से पहले पीएफ में जमा रकम निकालने पर सभी चारों हिस्सों पर टैक्स लगता है.
यह है टैक्स देनदारी का गणित
यहां गौर करने वाली यह है कि इम्प्लॉई के कंट्रीब्यूशन पर टैक्स की देनदारी मुख्यतया दो बातों पर निर्भर करती है. अगर इम्प्लॉई अपने कंट्रीब्यूशन पर 80C के तहत मिलने वाले डिडक्शन का लाभ लेता है तो उसका कंट्रीब्यूशन टैक्स के दायरे में आएगा. उसके अंशदान को सैलरी का हिस्सा माना जाएगा. लेकिन 80C के तहत डिडक्शन का लाभ नहीं लेने पर इम्प्लॉई का कंट्रीब्यूशन टैक्स के दायरे में नहीं आएगा. नियोक्ता का कंट्रीब्यूशन और उस पर मिलने वाले ब्याज को सैलरी का हिस्सा माना जाता है.
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